Nirjala Ekadashi Katha | निर्जला एकादशी कथा

|| निर्जला एकादशी की महिमा ||

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है।

निर्जला एकादशी के व्रत की महिमा निम्नलिखित है:

  • पापों का नाश: इस व्रत का पालन करने से पुराने पापों का नाश होता है, और व्यक्ति अध्यात्मिक पुरिफायर की ओर बढ़ते हैं।
  • भगवान विष्णु की कृपा: निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है।
  • आत्मा की शुद्धि: निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने से आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति अपने आत्मा के आसपास के अवगुणों से मुक्त होते हैं।
  • स्वास्थ्य के लिए लाभ: यह व्रत आयुर्वेदिक दृष्टि से भी स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है, क्योंकि एक दिन के लिए पानी का त्याग करने से आंतों की शुद्धि होती है और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
  • कर्मों का फल: निर्जला एकादशी का पालन करने से कर्मों का फल भी सुधर सकता है और व्यक्ति के कर्मों का निष्काम भक्ति के साथ सेवन करने का अवसर मिलता है।
इस प्रकार, निर्जला एकादशी व्रत को भगवान विष्णु की पूजा, आत्मा की शुद्धि, और स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इसका पालन भक्ति और साधना का अच्छा उदाहरण भी हो सकता है।

|| व्रत की विधि एवं विवरण ||

निर्जला एकादशी व्रत को पूरी भक्ति और आदर के साथ मनाने के लिए निम्नलिखित विधि और विवरण होता है

  • इस व्रत की तैयारी एक दिन पहले ही शुरू करें, और अन्न, तांबे के बर्तन, और दूसरी पूजा सामग्री को तैयार करें।
  • निर्जला एकादशी व्रत का पालन विशेष दिन होता है, जो एकादशी तिथि को आता है।
  • व्रती को इस दिन अन्न और पानी की त्याग करना होता है, जिससे व्रत का उपवास पूरा होता है। निर्जला एकादशी के दिन व्रती को एक बार भी पानी नहीं पीना चाहिए।
  • भगवान विष्णु की पूजा के लिए व्रती को एक सुखमय और शुद्ध स्थान पर बैठना चाहिए।
  • तुलसी की पूजा करें और उसका पूजन सामग्री में शामिल करें।
  • विष्णु और लक्ष्मी की मूर्ति को पूजें और उन्हें तिलक और चादर से ढ़कें।
  • भगवान विष्णु के मंत्रों और भजनों का पाठ करें।
  • दिन भर आराधना और मनन करें, और भक्ति और आदर से भगवान को स्मरण करें।
  • पूरे दिन भगवान की पूजा और स्मरण करते हुए, व्रती को पानी और अन्न की प्रतिक्षिप्ता से दूर रहना चाहिए।
  • व्रत को पूरा करने के बाद, अगले दिन भगवान की पूजा करें और फिर से अन्न-पानी ले सकते हैं।
  • व्रत का खुलासा अगले दिन किया जाता है, और इसे विशेष रूप से करें जिसमें एक प्रसाद की भिक्षा करना शामिल होता है।
निर्जला एकादशी व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इसका पालन विशेष ध्यान और आदर के साथ किया जाना चाहिए। इसके माध्यम से व्रती अपनी आत्मा की शुद्धि करते हैं और भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं।

|| श्री गणेशाय नमः ||

श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण
भज मन नारायण-नारायण-नारायण
भज मन नारायण-नारायण-नारायण
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण

|| निर्जला एकादशी व्रत कथा ||

द्वापर युग में, ऋषि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा दी। उन्होंने पांडवों को एकादशी व्रत का संकल्प भी कराया।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का वर्णन करते हुए युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, "हे जनार्दन! इस एकादशी का क्या महत्व है?"

श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन! इस एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।"

भीम ने कहा, "हे पितामह! मुझे भूख बहुत लगती है। मैं एक दिन भी भूखा नहीं रह सकता। क्या कोई ऐसा व्रत है जिसे मैं वर्ष में केवल एक बार करूं और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए?"

वेदव्यास जी ने कहा, "हाँ, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में सूर्य जब वृषभ या मिथुन राशि में होता है, तो वह एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस एकादशी का व्रत करने से सभी 25 एकादशीयों के व्रत का फल मिल जाता है।"

वेदव्यास जी ने निर्जला एकादशी के व्रत का विधि-विधान बताया। उन्होंने बताया कि इस व्रत में पूरे दिन अन्न और जल का सेवन वर्जित है। केवल आचमन के लिए संध्या समय से पहले दाहिने हाथ के अंगूठे के ऊपर जो छोटा सा गढ़ा बनता है, उसपर जितना जल आ सकता है, उसे ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके और ब्राह्मणों को भोजन करा के दान दक्षिणा आदि देकर विदा करना चाहिए। इसके पश्चात ही स्वयं भोजन करना चाहिए।

भीम ने निर्जला एकादशी का व्रत करने का संकल्प लिया। उन्होंने व्रत के नियमों का पालन किया और भगवान विष्णु की पूजा की। इस व्रत के प्रभाव से भीम को सभी पापों से मुक्ति मिल गई और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

निर्जला एकादशी का व्रत सभी भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी है। इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।